सालों बाद भी नहीं सुलझा शिक्षकों का मसला
भोपाल । प्रदेश के हजारों शिक्षकों की समस्या सालों बाद भी नहीं सुलझ पाई है। पांच साल बाद भी सरकार तय नहीं कर पाई है कि शिक्षकों को क्रमोन्नति देना है अथवा पदोन्नति। प्रदेश के 80 हजार शिक्षक प्रदेश सरकार से मामले को सुलझाने की आस लगाए बैठे हैं। सूत्रों के अनुसार, वर्ष 2018 से यह नोटशीट मंत्रालय और लोक शिक्षण संचालनालय की बीच घूम रही है। इसबीच यह नोटशीट स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री इंदर सिंह परमार और प्रमुख सचिव रश्मि अरुण शमी के हाथों से भी गुजरी है। शिक्षक भी कई बार आंदोलन कर चुके, पर निर्णय नहीं हुआ। इसकी असल वजह कनिष्ठ अधिकारी को अपने अधिकार सौंपने की परंपरा है। इस कारण शिक्षकों को तीन से पांच हजार रुपये प्रतिमाह का नुकसान हो रहा है। सरकार ने दो लाख 87 हजार शिक्षकों को वर्ष 2018 में नियमित किया है। इनमें से 80 हजार शिक्षक उसी साल 12 वर्ष की सेवा पूरी कर क्रमोन्नति के लिए पात्र हो गए। जनजाति कार्य विभाग ने तय समय पर लाभ दे दिया, पर स्कूल शिक्षा विभाग ने नहीं दिया। तब से शिक्षक लगातार लाभ देने की मांग कर रहे हैं। पहले क्रमोन्नति देने की बात हुई, पर बाद में कहा गया कि समयमान वेतनमान दिया जाना चाहिए। इससे शिक्षकों को ग्रेड-पे का नुकसान है, फिर भी वे तैयार हैं, नोटशीट भी चली, जिसमें कई बार सुधार भी हुआ, पर निर्णय नहीं हुआ। अब कहा जा रहा है कि सहायक, उच्च श्रेणी शिक्षक और व्याख्याता जैसी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षकों को क्रमोन्नति और उच्च माध्यमिक शिक्षक को समयमान वेतनमान का लाभ दे सकते हैं। यह मामला अधिकारियों में अधिकार के बंटवारे के कारण उलझा है। दरअसल, व्याख्याता का नियुक्तिकर्ता आयुक्त लोक शिक्षण है। ऐसे ही उच्च श्रेणी शिक्षक का संयुक्त संचालक और सहायक शिक्षक का जिला शिक्षा अधिकारी। पूर्व में आयुक्त ने अपने अधिकार प्रत्यायोजित कर संयुक्त संचालक और संयुक्त संचालक ने जिला शिक्षा अधिकारी को सौंप दिए। यानी जो काम आयुक्त का है, वह संयुक्त संचालक करे। यही व्यवस्था वह नए शिक्षक संवर्ग को लेकर चाहते हैं और वित्त विभाग इसके लिए तैयार नहीं है, वह बार-बार कह रहा है कि नियोक्ता अधिकारी अपने अधिकार का उपयोग कर क्रमोन्नति, समयमान वेतनमान दें। इस बारे में आजाद अध्यापक-शिक्षक संघ अध्यक्ष भरत पटेल का कहना है कि प्रमुख सचिव, मंत्री स्तर पर कई बार बात हो चुकी है, सभी आश्वासन देते हैं कि जल्दी मामला सुलझ जाएगा, पर निर्णय नहीं हो पा रहा है। हम फिर से आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। संयुक्त मोर्चा की संभागीय बैठकें शुरू हो गई हैं।