मुगल सम्राट जहांगीर ने अपनी बेगम नूरजहां के नाम पर नाम बदलकर रखा सिरोहा से बना नूराबाद
मुरैना नूराबाद किसी जमाने में सिरोहा के नाम से जाना जाता था। 16 वीं शताब्दी में सुप्रसिद्ध मुगल सम्राट जहांगीर ने उपनी खूबसूरत बेगम नूरजहां के नाम पर यहां पुल बनवाया और मेहरवों बनवाईं। इसके बाद इसका नाम नूराबाद पड़ गया है। यह पुल और उस पर बनी मेहरावें आज भी मुगल बादशाह जहांगीर व नूरजहां की प्रेम की निशानी हैं। आगरा-मुम्बई राजमार्ग पर बना यह पुल सांक नदी पर बनाया गया है। ग्वालियर से इसकी दूरी 24 किलोमीटर है। यह मुरैना जिले में आता है। मुगल बादशाह जहांगीर ने इस सिरोहा गांव के पास सांक नदी पर पुल का निर्माण कराया था, जिसमें सात मेहराबें तैयार की गई थीं। ये मेहराबें लगभग छह मीटर ऊंची हैं और पांच मीटर चौड़ी हैं। 16 वीं शताब्दी में बनवाए गया यह पुल आज भी जस का तस है। हालांकि अब इस पुल पर से आवागमन बंद कर दिया गया है। यह मेहरावें अब पुरातत्व विभाग की धरोहर है।
1923 तक थी तहसील
वर्ष 1923 तक नूराबाद तहसील मुख्यालय हुआ करता था। उसके बाद यहां से तहसील मुख्यालय शिफ्ट हो गया। फिलहाल यहां एक थाना है। बस्ती है और सड़क के दोनों तरफ बाजार है। लगभग 30 हजार लोगों की बस्ती यहां है। यहां रहने वालों में अधिकांश संख्या मुस्लिम वर्ग की है।
सराय का भी कराया था निर्माण
मुगल बादशाह जहांगीर ने यहां एक सराय का भी निर्माण कराया था। सराय एक गढ़ी के रूप में है, जिसमें बुर्ज बनी हैं तथा छतरीयुक्त दो विशालकाय द्वार निर्मित हैं। हालांकि समय के साथ यह अब जर्जर अवस्था में पहुंच गई है। सराय के द्वार पर फारसी में लिखा है कि इसकी मरम्मत सन1661 में औरंगजेब के शासनकाल में कराई गई थी। पर्यटकों को यह ऐतिहासिक स्थान बहुत भाता है। कुछ समय पहले यहां पर्यटन विकास निगम ने टूरिस्ट हट बनाने का प्रयास किया था।