जिनेवा । संयुक्त राष्ट्र जैवविविधता सम्मेलन (सीओपी15) के दौरान जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की पवित्र नदी गंगा के मैदानी हिस्सों की सेहत सुधारने के उद्देश्य वाली परियोजना दुनियाभर की उन 10 ‘‘बड़ी महत्वपूर्ण पहलों में से एक है जिसे संयुक्त राष्ट्र ने प्राकृतिक दुनिया को बहाल करने में उनकी भूमिका के लिए पहचाना है।
इन परियोजनाओं को संयुक्त राष्ट्र द्वारा परामर्श और वित्त पोषण मिलेगा। इन्हें पारिस्थतिकी बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक के बैनर तले चुना गया है जो संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा समन्वित वैश्विक आंदोलन है।
संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि इस धरती के प्राकृतिक स्थानों के क्षरण को रोकने के लिए बनाया गया है। इन 10 परियोजनाओं का उद्देश्य 6.8 करोड़ हेक्टेयर से अधिक प्राकृतिक स्थान को बहाल करना है। यह क्षेत्र म्यांमा फ्रांस या सोमालिया से बड़ा है। यूएनईपी के कार्यकारी ने कहा प्रकृति के साथ हमारे संबंधों में बदलाव जलवायु संकट प्रकृति और जैवविविधता के क्षरण प्रदूषण तथा कचरे के तिहरे संकट से निपटने के लिए अहम है।’’
संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि गंगा नदी पुनर्जीवन परियोजना में गंगा के मैदानी हिस्सों की सेहत बहाल करना प्रदूषण कम करने वन्य क्षेत्र का पुन: निर्माण करने तथा इसके विशाल तलहटी वाले इलाकों के आसपास रह रहे 52 करोड़ लोगों को व्यापक फायदे पहुंचाने के लिए अहम है। इसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन प्रदूषण में वृद्धि औद्योगिकीकरण और सिंचाई ने हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक 2525 किलोमीटर तक फैले गंगा क्षेत्र का क्षरण किया है।
बयान के अनुसार मोदी सरकार की 2014 में शुरू ‘नमामि गंगे’ योजना गंगा और उसकी सहायक नदियों के मैदानी हिस्सों के पुनर्जीवन और संरक्षण गंगा बेसिन के कुछ हिस्सों के वनीकरण और सतत कृषि को बढ़ावा देने की पहल है। इस परियोजना का उद्देश्य अहम वन्यजीव प्रजातियों को पुनर्जीवित करना भी है। अभी तक 4.25 अरब डॉलर के निवेश वाली इस पहल में 230 संगठन शामिल हैं। इसके अलावा अभी तक 30000 हेक्टेयर जमीन का वनीकरण हो चुका है और 2030 तक 134000 हेक्टेयर भूमि का वनीकरण करने का लक्ष्य है।